3 दिस॰ 2008

श्रीमान प्रधानमंत्रीजी दिल की सुनिए ......

प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने बुधवार को कहा कि मैं इत्तफाक से राजनीतिज्ञ हूँ मेरा सबसे पसंदीदा काम पढ़ाना है। प्रधानमंत्री ने कहा कि सालों तक विश्वविद्यालय में पढ़ाना उनके जीवन का सर्वाधिक दिलचस्प दौर था। मनमोहन ने जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर) में इंटरनेशनल सेंटर फॉर मटेरियल्स साइंस (आइसीएमएस) तथा सीएनआर हाल के उद्घाटन के समय पहले से तैयार अपने भाषण से हटते हुए यह बात कही।

श्रीमान प्रधानमंत्री जी , आप ठीक फरमा रहे हैं आप राजनीतिज्ञ नहीं है , सही बात तो ये है की आप मैडम के चमचे है। आप दिल में झांक कर , गुरु जी को याद कर के बोलो कियह बात सत्य है कि नही, आपको क्या पड़ी थी कि आप प्रधान मंत्री बनते, आपको अपनी अबिलिटी तो मालूम ही थी कि आप दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का चुनाव हार गए थे, जो आदमी एक लोक सभा का चुनाव नहीं जीत सकता आखिर उसको प्रधानमंत्री बनने कि जरूरत क्या है। पिछले ५ सालों से एक अयोग्य गृह मंत्री को सहन करते रहे .... आपसे नहीं बन पाया कि उसका इस्तीफा ले ले ... आज मैडम को जरूरत पड़ी तो एक मिनट में उसको बाहर का रास्ता दिखाया। श्रीमान आप विद्वान है याद कीजिये देवगोडा का जमाना ... और अपने से तुलना कीजिये .... आप पाएंगे कि आप श्री देवगोडा से भी बतर साबित हो रहे हैं। जो समय रहते गुरआ तो देते थे परन्तु आप तो सदा मन को मर कर शासन कर रहेहैं । जेसे मैडम कि आज्ञा । श्रीमान वक्त कि नजाकत को समझे अबी भी समय है कुछ टaईट हों जाए। वोट बैंक से क्या लेना..... बस कठोर कदम उठायें । जो फांसी से वंचित हैं उन्हें तुंरत फांसी दीजिये .... जिनके मामले कोर्ट mएं चल रहे हैं उन पर अतरिक्त जज लगा कर उनका निपटारा करवाए। दशम पिता का ध्यान करो ....

देही शिवा वर मोहे एही

शुभ कर्मन से कबहूँ न टरों

डरों ari जब जाय लरों

निश्चय कर अपनी जीत करूँ

पड़ोसी की नियत शुरू से ही खोटी रही है. आज की बात नहीं है ... हरामजादे शुरू से ही उर्दू की मुशायेरे और क्रिकेट की बातें करते करते पीठ में छुरी घोंप जाते है. अब क्या कहे रहे है "जरदारी ने मुंबई हमलों में अपने देश की भूमिका होने से इनकार करते हुए कहा कि आतंकवादियों का किसी देश से कोई सरोकार नहीं होता। उन्होंने कहा कि भारत की आर्थिक राजधानी पर हमले उन लोगों ने किए जो पूरी दुनिया को बंधक बनाना चाहते थे।राष्ट्रपति ने भारत की वह माँग भी खारिज कर दी, जिसमें इस्लामाबाद से 20 आतंकवादियों को नई दिल्ली के सुपुर्द करने के लिए कहा गया था। येह ज्ञात रहे की कि यह आतंकवादी पाकिस्तान में हैं।"
सिंह साहेब , याद करो महाराजा रणजीत सिंह नें खेबर दर्रा तक पंजाब की सीमाएँ पहुंचाई थी , और अब दुश्मन भी यहीं अड्डा जमे बेठा है . यहाँ तक इनको मरने के लिए हमें कोइ और हुकाम्रानो की जरूरत नहीं है. बस अपनी विरासत को देखो - और सोचो - ये काग्रेसी आपको बर्बाद कर रहे देश को बर्बाद कर रहे हैं ... आप इनके चक्कर में मत पडो. मैडम का हुकम बजाना बंद करो - देश आपके साथ है ... दो चार अच्छे साथी चुन कर कार्यवाही चलो करो.

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