साहेब, शराबखोरी का कोई नियम नहीं होता, न ही इसके लिए देश काल का ध्यान रखा जाता है... शराबखोरी के लिए २ बातें आवश्यक होती हैं - शराब और शराबी... इसमें तीसरा पक्ष है बेमानी. चाहे क्यों न हो वो पानी. नमकीन का क्या हुआ, कहाँ बैठ कर पियेंगे...... यार अभी टाइम क्या हुआ है... सूरज देवता सर पर चमकते हुए मुंह चिढा रहे हैं... इ भी सब है बेमानी....
तु ला बस पानी....
वो भी न मिले तो कोई दिक्कत नहीं,
सरसों को पानी लग रहा है,
क्या कहा, ट्यूबवेल बहुत दूर है,
कोई नहीं, धोरे (खेत की मुंडेर के साथ साथ पानी की नाली) से पानी ले लेंगे.
प्याला ?
क्या प्याला?
वो भी मिला तो कोई बात नहीं,
साइकल की घंटी उतार कर प्याला बना लेंगे, पौव्वा तो मेरी अंटी में हेगा. बस 'तु' आ.
'तु' यानी, मित्र, सखा, बंधू, प्रियतमा, परमेश्वर...... बस 'तेरा' साथ चाहिए, तु सामने होना चाहिए... मुझे किसी और की जरूरत नहीं.... मैं लात मारता हूँ इस दुनिया को...
जी शराबी लात पर रखता है दुनिया को.