13 नव॰ 2013

सिख राजनीति में उलझी हरिनगर विधानसभा सीट

दिल्ली के चुनावों में हरिनगर विधानसभा सीट सिख राजनीति अखाड़े में ऐसे उलझी कि कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए निकालनी भारी पड़ रही है. भाजपा विधायक और दिल्ली सरकार में पूर्व उद्योग मंत्री रहे सरदार हरशरण सिंह बल्ली ने अपनी टिकट कटती देख कांग्रेस की और रुख किया है. कांग्रेस से अभी तक सुरेन्द्र सेतिया की टिकट पक्की लग रही थी – और जब दिल्ली प्रदेश कांग्रेस ने 52 सीटों की पहली लिस्ट जारी की थी तो उसमे भी सुरेन्द्र सेतिया का नाम था. लग रहा था बल्ली भाजपा छोड़ कर कांग्रेस से भी रह गये. राजनीति सदा रात के अँधेरे में करवट लेती है – और यही सुरेन्द्र सेतिया के साथ हुआ. उनके जो समर्थक कल तक लड्डू बाँट कर ख़ुशी का अहसास कर रहे थे – उनके चेहरे उतर गए कि पंजे का निशान बल्ली को अलाट हो गया है.

श्याम शर्मा :: हरशरण सिंह बल्ली :: जगदीप सिंह 
२००८ के चुनावों में हरिनगर विधान सभा क्षेत्र के 1,45,780 से 51,364 वोट भाजपा के हरशरण सिंह बल्ली को मिले थे, जिसकी बदौलत उन्होंने अपने नजदीकी प्रतिद्वंदी कांग्रेस के रमेश लम्बा को 28,758  वोटों के अंतर के हराया था. इस विधानसभा क्षेत्र में लगभग 54,00 सिख वोटर हैं... जिनके दम पर अकाली दल ने भाजपा से ये सीट मांगी है. सिख बिरादरी को यहाँ नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता – ये बात आम आदमी पार्टी के अरविन्द केजरीवाल जैसे नए खिलाडी भी समझ गए और सरदार जगदीप सिंह को यहाँ से टिकट दी है.

सूत्र बताते हैं कि असल मसला कुछ अरसा पहले हुए दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव का था. जिसमे सुभाषनगर सीट पर बल्ली ने कांग्रेस समर्थित सरना गुट के तेजेंद्र सिंह गोपा का समर्थन किया था. पश्चिमी दिल्ली के 10  में से सरना गुट को एकमात्र यही सीट मिली. शिरोमणि अकाली दल के मुखी सरदार प्रकाश सिंह बादल को चुभ गयी. उस समय तो बात आयी गयी हो गयी पर विधानसभा चुनावों में इस प्रकरण का नतीजा ये निकला कि हरिनगर विधानसभा सीट पर अकाली अड़ गए. बिखरते एनडीए के कुनबे को बचाने के लिए भाजपा को अपने हैवीवेट विधायक की कुर्बानी देनी पड़ी. बल्ली अंदरखाने सरना से मिले और रणनीति के तहत विधानसभा और पार्टी दोनों से इस्तीफा देकर कांग्रेस पार्टी के लिए जुगत भिडाने लग गए.

कांग्रेस में सुरेंदर सेतिया के अलावा सुभाष नगर के ही दुसरे वरिष्ठ नेता ओ पी वधवा हैं – जिन्हें 1998 में कांग्रेस की टिकट पर बल्ली को अच्छी टक्कर दी थी मगर वो मात्र 600 वोटों से हार गए थे. पेशे से वकील और पुराने संघी रहे ओ पी वधवा ने 1993 में टिकट न मिलने के कारण भाजपा छोड़ दी थी. वधवा के भाजपा छोड़ कर जाने से बल्ली भाजपा के अविवाद्य नेता रह गए. अब राजनीति की विडम्बना देखिये बल्ली को कांग्रेस की टिकट मिलते ही सुभाष नगर में वधवा के घर एच एस बल्ली जिंदाबाद के नारों के साथ ही कार्यकर्ताओं का जमघट लग गया.

चूँकि काफी अरसे से एच एस बल्ली हरिनगर से विधायक चुन कर आते रहे हैं अत: सुभाष नगर भाजपा मंडल पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा. खुलेआम ही कुछ भाजपा कार्यकर्ता अपने को बजाये पार्टी के, बल्ली का कार्यकर्ता कह रहे हैं. कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ता भी अंदरखाने में ‘बल्ली वाली कांग्रेस’ के संपर्क में हैं. जो तेल और तेल की धार दोनों देख रहे हैं.

उधर अकाली दल ने सभी समीकरण उलटते हुए इस सीट पर भाजपा के निगम पार्षद रहे श्याम शर्मा के सर पगड़ी बाँध दी है. श्याम शर्मा ने भाजपा छोड़ अकाली दल की सदस्यता ग्रहण कर ली. कल तक इक्कठे कार्य करते हुए बल्ली और शर्मा राजनीति की बिसात पर आमने सामने खड़े हैं. दोनों ने ही भाजपा से त्यागपात्र दे दिया है - और दोनों के कार्यकर्ता ही पशोपेश में हैं. हरिनगर और राजौरी गार्डन में अकाली दल ने अपने चुनाव चिन्ह तराजू पर लड़ने का फैसला किया है. भाजपा के लिए चिंता की बात है कि उसका पुराना वोट बैंक पंजाबी वोटर, जिसे मशीन में कमल ढूंढने की आदत है, के लिए तराजू नया निशान है. सिख बिरादरी न चाहते हुए भी बल्ली के पक्ष में मतदान कर सकती है. स्पष्ट है कि भाजपा का वोट बैंक पंजाबी और सिख बिखराव के रास्ते पर है.

बल्ली के कांग्रेस में आकर विधान सभा की राह उतनी आसान नहीं रहेगी जितनी भाजपा में रहते थी. क्योंकि बल्ली समर्थक भाजपा के परम्परागत वोटर के लिए कांग्रेसी पंजा पचाना इतना आसान नहीं रहेगा. दुसरे दिखने को तो कांग्रेस में सभी कुछ शांत लग रहा है पर सेतिया और वधवा जैसे खांटी  दिग्गज आसानी से अस्त्र-शस्त्र नहीं डालेंगे. यहाँ भी भीतरघात की पूरी सम्भावना है. ऐसे में आम आदमी पार्टी के जगदीप सिंह विधानसभा जाने की संभावनाएं तलाशते नज़र आयें तो गलत नहीं है.

जी, मोहरे सज चुके हैं.... राजनितिक दांव पेच जारी है... अभी तक आम वोटर तमाशा देख रहा है. आठ दिसम्बर सुबह ये लोग जनता के खेल का तमाशा देखेंगे.

- जय राम जी की

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